रैन बसेरा
- 45 Posts
- 67 Comments
र्दद से मेरा रिश्ता
बहुत पुराना है
उतना ही
जितना शरीर का आत्मा से
आत्मा का परमात्मा से
सुबह का शाम से
और दिन का रात्रि से
बहुत चाहता हूं
इसे छिपा दूं
कुछ इस तरह
जैसे था ही नहीं
और है भी तो अपना नहीं
यह उसी का है जिसका
अब सिर्फ एहसास है
नश्वर स्थूल है
सूक्ष्म नहीं
शरीर है आत्मा नहीं
फिर, एहसास!
विस्मरण का
स्मरण है
अन्त का आदि और
अनादि का स्थाईभाव
मैं कौन हूं
नहीं जानता
शायद तुम भी नही
और अन्य कोई भी नहीं
पर जानना तो होगा
अपने को
अपने अस्तित्व को
अपनी इयत्ता को
यह एक जटिल
अर्न्तद्वन्द है
तन का, मन का
और अह्म का।।
Read Comments