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आजकल

रैन बसेरा
रैन बसेरा
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पंछियों ने चहचहाना क्यूँ छोड़ दी है आजकल
शायद दरख्तों पर है धमाकों की गूँज आजकल

होली के दिनों में भी बंद हैं रंगों की फैक्ट्रियां
रंगों की जगह खून की बढ़ी है मांग आजकल

कभी बनारस , कभी दिल्ली तो कभी मुम्बई
हर जगह धमाकों की बरसात है आजकल

आखिर क्यूँ नहीं पसिजता दिल उन आतंकियों का
जिनके घरों में है बालकों की किलकारियां आजकल

खून पीना बन गया है फितरत सियासत का
लोगों के ग़म भी पिने की जरूरत है इसे आजकल

गैर मुल्की सियासत का कहीं हम न होजायें शिकार
इसलिए हमे काफी बच के रहने की ज़रूत है आजकल॥

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