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मंजिल

रैन बसेरा
रैन बसेरा
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भटक रहा हूं मैं
अपने अस्तित्व की तलाश में
कभी तो मिलेगी मंजिल
बस इसी आपस में
मुक्त पवन में, उन्मुक्त गगन में
कर रहा हूं विचरण
उसे न पा सका तों
हे! प्रभु आउंगा
आपकी शरण में
क्योंकि आप ही में है वह शक्ति
जो दूर कर सकती है
मेरी आसक्ति!!

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