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सालगिरह का जश्न और उम्मीद का धुँधलापन

रैन बसेरा
रैन बसेरा
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बड़ा गहरा ताअल्लुक है सियासत का तबाही से,
जब कोई शहर जलती है तो दिल्ली मुस्कुराती है!!
हालिया सियासी दौर में इस शेर की क्या प्रासंगिकता है और उत्तर प्रदेश के कानून व्यवस्था से इसका क्या सम्बंध है, इस बाबत कुछ कहना ठीक नहीं मगर यह शेर कुछ कहता जरूर है। उत्तर प्रदेश में सपा सरकार के एक साल पूरा करने जा रही है, सपा के एक साल के कार्यकाल पर गौर फरमाया जाए तो विकास के नाम पर बहुत कुछ करने का दावा लगातार सिायासी व मीडिया मंच से प्रदेश के मुखिया द्वारा किया जाता रहा है। विकास के नाम पर बेरोजगारी भत्ता, कन्या विद्या धन, लैपटाप, बैट्री चलित रिक्षा, कर्ज माफी के साथ अन्य योजनाओं का धींधोरा खूब जोर व शोर से पीटा जा रहा है। इन सबके बीच कानून-व्यवस्था, सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत जरूरतें नक्कारखाने में तूती की माफिक दब जा रही हैं, शायद प्रदेश सरकार के एजेंडे मे ये चीजें हैं भी या नहीं! लेकिन इनके बिना प्रदेश के विकास की बात करना ठीक वैसे ही है जैसे मुंगेरी लाल के हसीन सपने!
इसे शर्म की बात कहें, सियासी मजबूरी या प्रशासन पर कमजोर पकड़ कि उत्तर प्रदेश में विगत एक साल के सपा सरकार में 27 दंगों का दाग युवा सी0 एम0 के दावन पर लग चुका है। इस दाग को मिटा पाना शायद आसान नहीं होगा जबकि लोकसभा का चुनाव सिर पर हो! फैजाबाद, बरेली, प्रतापगढ़, मथुरा, टांडा, भदोही, लखनउ में अमन चाहने वालों को सपा के युवा मुख्यमंत्री से निराशा हाथ लगी। वैसे तो प्रदेश में एक साल के सपा सरकार में 27 दंगे हुए मगर फैजादबाद में वो हुआ जो आजादी के 65 साल में नहीं हुआ था, बाबरी विध्वंश के दौरान नहीं हुआ था। अफसोस करने के सिवा हमारे बस में कुछ भी नहीं। अमन पसंद लोगों को ये बेहद नागवार गुजर रहा है कि इन सबके बावजूद प्रदेश में कानून-व्यवस्था पटरी पर आने का नाम नहीं ले रही है। हालांकि ट्रांसफर-पोस्टींग से लोगों में अमन की उम्मीद कायम करने का असफल प्रसाय जरूर किया जा रहा है।
आखिर क्या वजह है कि युवा मुखिया होने के बावजूद प्रदेश में अमन बहाली कर पाना सी0 एम0 साहब के लिए मुश्किल हो रहा है? सियासी जानकारों की मानें तो पार्टी के नेताओं का कल्चर, पार्टी में आपराधिक छवि वाले मंत्री व नेता इसके लिए जिम्मेदार हैं! राजा भैया, पण्डित सिंह व के0 सी0 पाण्डे सरीखे लोगों के पार्टी व सरकार में रहते प्रदेश में अमन की बात करना शायद बेमानी हो! आखिर क्या मजबूरी है कि डी0 पी0 यादव को रिजेक्ट करने वाले युवा सी0 एम0 का मोह इन आपराधिक चरित्र वाले नेताओ से नही भंग हो पा रहा है? एक सवाल ये भी है कि पुलिस का इकबाल जो होना चाहिए वो दिख नहीं रहा है! कुण्डा में सी0 ओ0 को मरता छोड़ हमराही भाग जा रहे हैं, कहीं थाने में डी0 जे0 पर दारोगा समेत पुरा अमला दबंग की धुन पर नाच रहा है तो कहीं दारोगा दबंगों की डर से परिवार समेत जिला छोड़ने पर मजबूर दिख रहा है, वहीं महिला पुलिस कर्मी सीधे सी0 ओ0 पर अष्लीलता का आरोप लगा रही है, ये सब किसी से छुपा नहीं है बल्कि मीडिया के कैमरों द्वारा टेलीविजन पर मनजर-ए-आम है। इस हालात में कानून का राज कायम करना बेहद चुनौतीपूर्ण दिख रहा है।
इसमें कहीं दो राय नहीं है कि प्रदेश में विकास, खुशहाली व अमन बहाली के लिए सी0 एम0 साहब फिक्रमन्द नहीं हैं बल्कि वो इसके लिए बाकायदा जीतोड़ मेहनत भी कर रहे हैं बावजूद इसके मामला पटरी पर आत नहीं दिख रहा है। प्रदेश के विकास के लिए विश्व बैंक के अध्यक्ष का दौरा व अमेरिकी कंपनियों से ताल-मेल सहित अनेकों प्रयास किये जा रहे हैं। मगर इन सबके बीच कानून-व्यवस्था प्रमुख मसला है। नोएडा में जो हुआ वो सबके सामने है। ऐसे माहौल में प्रदेश में कौन इनवेस्ट करना चाहेगा? तरक्की की राह शान्ति के रास्ते हमवार होती है। जब तक प्रदेश में पूरी तरह से कानून का राज नहीं कायम होगा तब तक कोई भी कम्पनी या व्यापारी प्रदेश में इनवेस्ट करने से करताता रहेगा! एक तरफ जहां वर्तमान हालात से निपटना जरूरी है तो दूसरी तरफ सियासी साख के नुक्सान की भरपाई। ऐसे में यह देखना होगा कि 2014 के आम चुनाव से पहले सी0 एम0 साहब अलादीन के किस चीराग का इस्तेमाल करेंगे जिससे कानून-व्यवस्था में सुधार के साथ आम जन में विश्वास बहाली हो पायेगी? एक साल बीत चुका है और हर नाकामी का ठीकरा विरोधीयों पर फोड़ कर सरकार खुद की जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। वक्त आन पड़ा है कि कुछ कड़े व मजबूत फैसले लेने का ताकि प्रदेश की बिगडती कानून-व्यवस्था पटरी पर आ सके वर्ना ये पब्लिक है सी0 एम0 साहब सब जानती है!
……
एम. अफसर खां सागर

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