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आडवाणी प्रेम सियासी चालबाजी का हिस्सा!

रैन बसेरा
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यूं तो सियासी उम्र की ढलान पर सियासी बुलन्दी छूने की हसरत हर सियासतदां में होती है मगर हसरत जब ताबनाक हो जावे तो बेचैनी पैदा होना लाजमी है। …और बेचैनी के हालत में कभी-कभी इंसानी जुबान का फिसलना या निगाहें कहीं पे और निशाना कहीं पे लगाना सियासी संकट की बायस भी हो जाती है। वर्तमान समाजवाद के पुरोधा व सपा सुप्रिमो मुलायम सिंह यादव की सियासी बेचैनी फिल्वक्त देखने लायक है! आम चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं नेता जी को पी. एम. पद का ख्वाब बेचैन किये जा रहा है। तभी तो अपनी यू0 पी0 सरकार को कामकाज दुरूस्त करने के वास्ते तम्बीह के दौरान बोल जाते हैं कि …आडवाणी जी झूठ नहीं बोलते! हालांकि इससे पहले लोकसभा में भाजपा व सपा का प्रेम सब ने देखा मगर अपनी प्रदेश सरकार को आडवाणी के इशारे पर तम्बीह करना लोगों को अटपटा लगा। फिर क्या था बात लखनउ से निकली और दिल्ली के सियासी गलियारे में हलचल पैदा कर दिया। फ्रैक्चर बहुमत वाले सियासी दौर में सम्भावनाओं की कमी नहीं इसलिए नेता जी का यह बयान बड़ी बहस में बदलते देर न लगा। आखिर क्यों ना बहस में बदले जबकि सेक्युलर चोला के सहारे प्रदेश में सपा हुकूमत में आयी हो बावजूद इसके मुलायम का आडवाणी प्रेम उनके समाजवादी चेहरे को साम्प्रदायिक चेहरे के अक्स में लोगों को देखने पर मजबूर कर दे रहा है!
नेता जी का यह बयान उस वक्त आया जब सरकार से डी. एम. के. द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद स्टालिन के ठिकाने पर सी.बी.आई. ने ताबड-तोड छापों की झडी लगा दी। इसलिए सियासी जानकार इसे कांग्रेस पर मुलायम की प्रेशर पालिटिक्स का हिस्सा मान रहे हैं। अब गौर फरमाने वाली बात यह है कि ऐसे बयान के पीछे सपा सुप्रिमो का मकसद क्या है? बात अगर आडवाणी के सही बोलने की है तो दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद वाले मसले पर कोर्ट में आडवाणी ने अपने हलफनामे में मस्जिद नहीं गिराने को कहा था बावजूद इसे बाबरी मस्जिद को गिराया गया। दूसरी तरफ कराची में जिन्ना के मजार पर उन्हे सेक्युलर बताने के बाद क्या हुआ वो सबके सामने है। ऐसे में आडवाणी को सच्चा कहना मुलायम सिंह को खुद झूठा साबित करता है क्योंकि सपा सुप्रिमों वोट के लिए मुसलमानों से भाजपा को साम्प्रदायिक बताते हैं! आखिर साम्प्रदायिक पार्टि का मुख्य लीडर समाजवादी चश्में में सच्चा कैसे हो गया?
सियासी फायदे के लिए मुलायम सिंह यादव ने कल्याण सिंह व साक्षी महाराज जैसे नेताओं को समाजवादी टोपी पहनाने से गुरेज नहीं किया है। अब एक बात लोगों को बेचैन किये है कि सियासी फायदे के लिए समाजवाद व साम्प्रदायवाद का मिलन तो नहीं होने वाला है? लाल व केसरिया रंग का संगम होली के पर्व पर होने की बात लोगों के जेहन में तैरने लगी है! हालांकि ऐसा साकार होता नहीं दिख रहा है। लेकिन मुलायम का भाजपा नेता व आडवाणी के प्रति मुलायम रूख ने समाजवाद में आस्था रखने वालों को पशो-पेश में डाल दिया है। तीसरे मोर्चा का राग अलाप कर नेता जी ने खुद को प्रमोट करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं मगर नेता जी के इस बयान ने सपा में हलचल मचा दिया तभी तो सपा नेता आजम खां ने आडवाणी को कमजोर चरित्र का नेता बताने में देर नही की। अब सवाल नेता जी के चरित्र पर उठना लाजमी है कि साम्प्रदायिक ताकतों का पुरजोर विरोध करने वाले मुलायम सिंह यादव को क्या जरूरत आन पडी आडवाणी के गुणगान की?
सपा सुप्रिमो को शायद याद नहीं कि दिल्ली का सपना देखने में सन् 2009 में कल्याण सिंह से दोस्ती कितनी महंगी पड़ी थी। मुसलामानों ने सपा से किनारा कर लिया था जिस वजह से लोकसभा में सपा दो दर्जन सीटों पर सिमट गयी बावजूद इसके आडवाणी प्रेम किसी सियासी चालबाजी का ही हिस्सा हो सकता है! एक तरफ मुसलमानों की हिमायत व कयादत का दम्भ भरने वाले मुल्ला मुलायम मुस्लिम कल्याण के लिए अपने सरकार की परवाह न करने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ भाजपा से पेंग बढ़ा कर सियासी हसरतों को परवान चढ़ाने के लिए बेताब दिख रहे हैं। काफी मिन्नत के बाद सपा मुसलमानों को विधानसभा चुनाव में अपने पाले में कर पायी है अगर नेता जी का यही हाल रहा तो आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी का जुलूस निकलते देर नहीं लगेगा। अब देखना है कि अपने इस बयान पर नेता जी कब तक कायम रहते हैं क्योंकि सपा को सियासी समर की वैतरणी पार करने के लिए मुस्लिम मतों की दरकार है। आडवाणी की तारीफ करना मुसलमानों के जज्बात को ठेस पहुंचाना है क्योंकि बाबरी विध्वंस के लिए आडवाणी का रोल सबको पता है! साथ ही मुस्लिम समाज भाजपा व आडवाणी के प्रति क्या विचार रखता है वो जग जाहिर है। साम्प्रदायिक ताकतों को सत्ता से दूर रखने के नाम पर समाजवादी पार्टी ने हमेशा सियासत किया है चाहे वो केन्द्र में यू0पी0ए0 सरकार को समर्थ का सवाल ही क्यों ना हो। मुलायम सिंह का यह दावं सियासी अखाडे में खुद पर भारी पडता नजर आ रहा है।
अब देखना है कि खुद को मुसलमानों का मसीहा बताने वाले मुलायम सिंह यादव का सियासी सफर जोड़-तोड के दौर में किस करवट बैठता है। सेक्युलर व कम्युनल सियासत के बीच थर्ड फ्रंट की बात करने वाले नेता जी कहीं कम्युनल राजनीति का शिकार ना हो जायें? आडवाणी की शान में कसीदे पढ़ना मुसलमानों को बेहद नागवार गुजरा है। ऐसा हुआ तो मुसलमानों की नाराजगी का सामना करना सपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी, जिस वजह से सपा का उत्तर प्रदेश से सफाया होते देर नहीं लगेगा। अगर ऐसा हुआ तो नेता जी के लिए… दिल्ली दूर हो जायेगी!

एम. अफसर खां सागर

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