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देश के लिए टोपी पहननी होगी

रैन बसेरा
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भाजपा-जेडी (यू0) के सत्रह साल पुराने गठबन्धन में वैसे तो अनेकों वैचारिक मतभेद हुए होंगे मगर यह तल्खी भाजपा के लिए राजनीतिक बाउंसर से कम नहीं। सुशासन बाबू के तरकश से निकला हर तीर भाजपा के विकास पुरूष के पी.एम. दावेदारी के सपने को लहुलुहान करता दिखा। जिस चेहरे को भाजपा सामने लाकर हस्तीनापुर की गद्दी पर कब्जे की मंशा रखती है उसको नीतीश कुमार ने जेडी (यू0) के राष्ट्रीय परिषद की बैठक में इशारों ही इशारों में सिरे से खारिज कर दिया। हालिया सियासर परिदृश्य देखा जाए तो नरेन्द्र मोदी एनडीए में सबसे चर्चित व विवादित चेहरा हैं। अहंकारी स्वभाव और बंटवारे वाली सियासत की वजह से मोदी के जितने दोस्त है उतने ही दुश्मन भी। मोदी विरोध की सियासत नीतीश को राष्ट्रीय फलक पर महत्वपूर्ण बना देती है। नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व के साथ उनके विकास माडल पर भी सुशासन बाबू ने सवालिया निशान खड़ा करने में गुरेज नहीं किया। बुनियादी वसूलों से समझौता ना करने की नसीहत देते हुए नीतीश ने भाजपा को खबरदार भी किया कि रास्ता बदलने की कोशिश में परेशानी बढ़ सकती है। हालांकि भाजपा को पी. एम. पद के दावेदार का नाम फाइनल करने के लिए दिसंबर तक का मोहलत जेडी (यू0) की तरफ से जरूर दे दिया गया है।
सियासी रिश्ते हमेशा नफा-नुक्शान के बुनियाद पर बनते और बिगड़ते हैं। शायद यही वजह है कि जेडी (यू0) ने दो टूक लफ्जों मे भाजपा को बता दिया है कि धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर मोदी उसे किसी हालत में पी. एम. पद के उम्मीदवार के रूप में नहीं कबूल होंगे। वजह 2002 के गुजरात दंगों का दाग बताया गया। नीतीश कुमार ने एक तीर से न जाने कितने शिकार कर डाले। एक तरफ जहां भाजपा को नसीहत किया तो दूसरी तरफ मोदी के विकास माडल पर अनेकों प्रश्न चिन्ह लगाये। मोदी के सद्भावना यात्रा पर सवला किया कि ये देश प्रेम, सद्भाव व गले मिलने से चलेगा। कभी टोपी भी पहननी होगी तो कभी टीका भी लगाना होगा। इशारा था मोदी के सद्भावना यात्रा के दौरान मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार करने पर। निगाहें कहीं पे और निशाना कहीं पे। नीतीश कुमार ने एक तीर से दो शिकार किये एक तरफ जहां मोदी के धर्मनिरपेक्षता पर सवाल खड़ा किया तो दूसरी तरफ बिहार के 16 प्रतिशत मुसलमानों को साथ बनाये रखने का जुगाड़ साधा।
वैसे तो मौका था जेडी (यू0) के राष्ट्रीय परिषद में राजनीतिक प्रस्ताव का मगर नीतीश के निशाना पर मोदी व उनका विकास माडल था। बिना नाम लिए सुशासन बाबू ने मोदी के विकास वाले गुब्बारे पर सियासी तीर छोड़ कर खूब हवा निकाला। मोदी के विकास पर नीतीश ने कहा कि विकास हुआ तो कुपोषण कैसा? विकास हुआ तो पीने का पानी क्यों नहीं? विकास में सबको बराबर हिस्सा मिलना चाहिए। विकास ऐसा ना हो कि गैर बराबरी ज्यादा बढ़े। मोदी पर हमलावर नीतीश ने मोदी के व्यक्तित्व पर भी सवाल खड़े किये। नीतीश का मानना था कि हवा बनाने से देश नहीं चलने वाला और ना ही जोर जबरदस्ती से देश चलेगा। ऐसा पी. एम. बने जो देश को जोड़कर चले। एक प्रान्त तो चल सकता है मगर देश चलाना सम्भव नहीं। मोदी के राजधर्म पर भी नीतीश के तीरों ने प्रहार किया। इशारा साफ था जो कुछ गुजरात में हुआ वैसे देश नहीं चल सकता। धर्मनिरपेक्षता की ओट से नीतीश ने मोदी के विकास माडल व उनके व्यक्तित्व पर इतने तीर चलाये कि भाजपा के सपने रक्तरंजित हो गये। भाजपा ने जेडी (यू0) को नसीहत दिया कि वो उनके मुख्यमंत्रीयों को ना निशाना बनाये।
दूसरी तरफ कांग्रेस को भी नीतीश के धर्मनिरपेक्षता में सियासत की बू दिखी। कांग्रेस नेता शकील अहमद ने कहा कि अटल बिहारी व आडवाणी ने साम्प्रदायिकता की जो बिमारी फैलाई है उसका सिम्टम मोदी हैं। नीतीश जी के सरकार में आर.एस.एस. के पांच मंत्री हैं बावजूद इसके ये धर्मनिरपेक्षता का दिखावा कर रहे हैं। सिर्फ वोट की राजनीति है उससे ज्यादा कुछ नहीं। इन सबके बीच कांग्रेस को भाजपा-जेडी (यू0) में छिड़ी नूरा कुश्ती रास आ रही है, क्योंकि कांग्रेस को भी सहयोगी दलों की तलाश है। नीतीश के तीरों ने भाजपा को सियासी समर में कूदने पहले ही घायल कर दिया है। नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी की जिस तरह आलोचना की वह एक प्रकार से भाजपा का अपमान ही है। ऐस में भाजपा को यह जरूरी हो जाता है कि वो मोदी के पीछे मजबूती से खडे हों। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो इससे भाजपा कार्यकर्ता हतोत्साहित होंगे जिसका खामियाजा भुगतने के लिए भाजपा को तैयार रहना होगा।
सियासी उूंट किस करवट बैठेगा अभी यह कहना ठीक नहीं मगर नीतीश के तीरों ने भाजपा को जरूर घायल किया है। नीतीश के बयानों ने भाजपा के विकास माडल पर जो सवाल खड़ा किया है उससे साथ टूटने का भी संकेत मिलता है। अगर ऐसा हुआ तो 2014 में भाजपा के सरकार बनाने के मंसूबों पर ब्रेक लगता दिख रहा है। नीतीश के धर्मनिरपेक्षता की पेंच ने भाजपा व उसके विकास पुरूष मोदी पर जो सवाल खड़ा किये हैं उससे मोदी के पी.एम. पद की उम्मीदवारी मुश्किल दिखती है।

एम. अफसर खां सागर

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