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उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार का अल्पसंख्यक (मुस्लिम) प्रेम जगजाहिर है। अब इसे अल्पसंख्यक (मुस्लिम) प्रेम कहें या स्वांग समझ से परे है। आखिर हो भी क्यों ना? मुजफ्फरनगर में दंगे होते रहे सरकार सोती रही! तकरीबन चाह माह पहले मुजफ्फरनगर में फैले दंगों के दानव ने सैकडों परिवारों का निगल लिया। कोई पूरी तरह तबाह हुआ तो कोई तबाही का मंजर देखने के लिए जिन्दा है। जिस इलाके में गन्ने की मिठास से लोग तर-बतर थें वहीं आज गन्ने के खेतों के पास से गुजरते लोग उस वक्त अपनी रफ्तार तेज कर दे रहे हैं जब हवा से गन्ने के खेतों में सरसराहट पैदा हो रही है। असल में वो सरसराहट गन्नों की नही इंसानी रूह में पनपे डर की है जिससे लोग अपनी चाल तेज कर दे रहे हैं।
बदलते सामाजिक परिवेश में मानवीय नजरिया पर राजनीत का गहरा अक्स पड़ा है। धर्म-जात में बंटते समाज में फिरकापरस्त ताकतें लोगों को लड़ाकर अपना उल्लू सीधा करना बखूबी सीख लिया है। डिवाइड एण्ड रूल वाली सियासत का दौर चालू है। जहां सोमों व राणाओं का फलसफा आसानी से लागू हो जा रहा है! अब सवाल दंगों के होने व उसमें सरकारी अमला की मुस्तैदी का नहीं रहा। यहां सवाल है सरकार की नीयत व नीयति का। दंगों के बाद लोगों के घर-असबाब सब तबाह हो गयें। इससे बड़ी तबाही हुई उनके अन्दर पनपे भय की। खुली आंखों से अपनों को कत्ल होते व अपनों के आबरू लुटते देख लोग सहम गयें। डर के साम्राज्य ने उनके जेहन मे घर कर लिया है इसलिए लोग दोबारा घर जाने से डर रहे हैं तो दूसरी तरफ लुटे काफिले को समेटने के लिए कुछ नहीं है। इन्ही मजबूरियों से पीड़ित लोग राहत कैंप न छोड़ने पर मजबूर है। मगर सरकार की अपनी मजबूरी है, दंगों के दाग को धोने का। दंगों की दाग धोने के लिए सरकार मुआवजे का लालीपाप देकर दंगा पीड़ितों को शरणार्थी कैंपों से हटाना चाहती है। जब तक लोग इन कैंपों में रहेंगे समाजवादी सरकार की किरकिरी हो रहेगी इसलिए सरकार इन लोगों के झोपड़ियों पर बुल्डोजर चलवा रही है।
सियासी पसमंजर से देखें तो सैफई महोत्सव में करोड़ों का खर्च वो भी नाच-गाना पर मगर राहत कैंपों में जीने के जरूरी संसाधन तक नहीं। उस पर से सरकार का सितम की उन्हे जबरन हटाया जा रहा है। इस सबपे भारी अखिलेश यादव के सरकारी हुक्मरानों की बदजुबानी। प्रदेश के प्रमुख सचिव गृह अनिल गुप्ता कहते हैं कि ‘‘राहत शिविरों में ठंड से किसी की मौत नहीं हुई है। ठंड से कोई नहीं मरता है, अगर ठंड से किसी की मौत होती तो दुनिया के सबसे ठंडे इलाके साइबेरिया में कोई जिंदा नहीं बचता।’’ उधर मुलायम सिंह यादव का मानना है कि राहत शिविरों में विरोधी दलों के कार्यकर्ता रह रहे हैं। मुआवजा का मरहम लगाकर सरकार मुसलमानों के जज्बात के साथ घिनौना मजाक कर रही है। साल का कैलेण्डर तो बदल गया मगर दंगा पीड़ितों के हालात नहीं बदले। अल्पसंख्यक आयोग के आदेश के बावजूद लोई शरणार्थी शिवर पर बुल्डोजर चलाकर सपा सरकार ने दंगा पीड़ितों के जज्बात पर ठेस पहुंचाया है। एक तरफ सैफई महोत्सव में अखिलेश सरकार करोड़ों रूपये नाच-गाना पर बहा रही है तो दूसरी तरफ राहत कैंपों में संसाधन के आभाव में मानवता दम तोड़ रही है। आखिर प्रदेश में समाजवाद की कौन सी बयार बह रही है जिसमें मानवता कराहने पर मजबूर है? मुलायम के समाजवाद का फल्सफा शायद सियासी फायदा के लिए राहत शिविरों से लोगों को जबरिया घसीट कर बुल्डोजर चलवाना है !
एम. अफसर खां सागर
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