Menu
blogid : 4723 postid : 717927

होली : जीवन में नेकी के रंग बिखेरने का पर्व

रैन बसेरा
रैन बसेरा
  • 45 Posts
  • 67 Comments

सदियों पूराना होली का त्यौहार तन और मन पर पड़े तमाम तरह के बैर, द्वेष और अहंकार को सतरंगी रंगों में सराबोर करके मानव जीवन में उल्लास और उमंग के संचार का प्रतीक है। होली रंगों, गीतों और वसंत के स्वागत का त्यौहार है। होली के दिनों में हुड़दंग, हुल्लड़, रंग और कीचड़ मानव मन में पनपे रस, उल्लास और प्रेम का प्रतीक है। जाहिरी तौर पर रंगों में इंसान की पहचान खो जाती है। होली में रंगों से सराबोर इंसान भले ही न पहचान में आये मगर हकीकत यह है कि देह जितनी रंगों में भींगती है, जितनी अचिन्ही हो जाती है वह उतनी ही पारदर्शी हो जाती है। कंपकपा देने वाले ठण्ड के बाद वसंत के आमद से मानव मन व जीवन में उल्लास-उमंग का रंग भर देने वाली त्यौहार होली भारतीय संस्कृति के उदार सामाजिक बुनावट की पहचान है।
मानव जीवन में हर त्यौहार का अपना अलहदा रंग होता है। होली का त्यौहार शोखी, हंसी-ठिठोली और चुहलबाजी के लिए मशहूर है। जहां नियम, कायदा व कानून सब ताक पर। सिर्फ और सिर्फ व्यंग्य, हास-परिहास का दौर। हवा में उड़ते रंग गुलाल, चहुंओर पिचकारियों की बौछार, फागुन के फुहड़ गीत, रंगों से सराबोर इंसान आपसी द्वेष व ग्लानि से मुक्त एक-दूसरे के गले मिलता है। ग्रामीण भारत में होली के कई दिन पहले से ही फाग गाना शुरू हो जाता है। मद-मस्त युवाओं की टोली शाम ढ़लते ही ढोलक-मजीरा लेकर फाग का प्रेम राग अलापना शुरू कर देते हैं। गांवों में चहुंओर उल्लास व उमंग का माहौल रहता है। जितने रंग उतने रंगों का व्यंजन। गुझिया और गुलाल का मानो चोली दावन का साथ।
दरअसल हर त्यौहार का मकसद हमें कुछ संदेश देना है। होली का पर्व हमें आपसी भाईचारा, सामाजिक सौहार्द व उमंग-उल्लास का संदेश देता है। जहां उंच-नीच, गोरा-काला, गरीब-अमीर सब कुछ सतरंगी रंगों में मिल कर खत्म हो जाता है। चहुंओर प्यार का खुमार देखने को मिलता है। होली वसंत के दिनों में प्रकृति और इंसान दोनों के तन-मन में उफन रहे प्रेम, रस और उल्लास का सतरंगी महोत्सव है। वक्त बदला और दौर भी। धर्म, संस्कृति और सामाजिक सरोकार बदले। त्यौहारों के मनाने का रूप जरूर बदला है मगर उसका अर्थ अब भी ज्यों का त्यों बना है। होली की खास पहचान प्रेम से लबरेज गीत हैं, बदलते परिवेश में इसकी जगह फूहड़ व द्वि-अर्थी गीतों ने जरूर ले लिया है मगर इसका असल रस अब भी बरकरार है। पश्चिमी सभ्यता के कुप्रभाव की वजह से बसंत को भुलाकर युवा वेलेंटाइन-डे मनाने लगे हैं। भारतीय संस्कृति को विसार कर पब संस्कृति की तरफ युवाओं का रूझान बढ़ा है। जिस वजह से हमारे सामाजिक व सांस्कृतिक ढांचे को काफी ठेस पहुंचा है।
होली का पर्व हमें अपनी संस्कृति व समाज के रंगों को बदरंग करने की जगह उन्हे बिखेरने का संदेश देती है। होली के रंग पर्व पर हमें अपने जीवन में नेकी के उजले रंगों से भरने का प्रयास करना चाहिए। ताकि समाज के वंचित व शोषित लोगों के जीवन में फैले अंधियारे को मिटाया जा सके। फूहड़पन और अश्लीलता की हदों में रहते हुए सामाजिक बदलाव व सौहार्द का गुलाबी रंग एक-दूसरे के चेहरों पर लगाने की आवश्यकता है, तब जाकर हम होली को सही मायने में मना सकते हैं। वर्ना होली, दीपावली व दशहरा जैसे त्यौहार अब सिर्फ प्रतीक भर बचे हैं। चन्द लोग खुद की खुशी के लिए ढोल-मजीरा बजाकर, गुझिया खा कर अगर होली के मायने को चरितार्थ करने का प्रसाय करेंगे तो बेमानी होगा। होली हमारी संस्कृति, सामाजिक बुनावट की पहचान है, जिसमें प्रेम, रस, उल्लास के रंग में पूरा समाज मद-मस्त व रंगीन रहता है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh